बचपन में बुद्ध को पढ़ते लगा , ये क्या तुक हुआ कि बच्चे को दुःख और पीड़ा से दूर रखो ताकि भविष्य में वो संत ना बन जाए | अंत में वो बड़े होने पर सब देख ही लिए और बड़े होने और ज्यादा विचारणीय बुद्धि होने के कारण उस पर इतना विचार किये कि सब त्याग ही दिया | बचपन से देखते रहते तो हमारी तरह सहज रहते इन सबसे | उनके परिवार ने गलत डिसीजन लिया था |
सालों बाद ये विचार बदल गया जब अपनी तीन साल की बिटिया का जन्मदिन एक अनाथाश्रम में मानने गए | आगे की पंक्ति में वहां सारे मेंटली चैलेन्ज बच्चे बैठे थे जिनमे से सभी के चेहरे और उनकी भाव भंगिमा बाकी बच्चो से अलग थी | एक बच्ची को तो जन्म से सिर्फ एक आँख थी | बिटिया उन्हें ही ध्यान से देखती रहीं और घर आते पूछने लगी वो बच्चे ऐसे क्यों थे |
उस दिन लगा बुद्ध का परिवार सही था हम अपने बच्चो को दुनिया का दुःख -दर्द , बीमारी , पीड़ा , समस्या बता कर दुखी नहीं करना चाहते | वो अभी उन सबसे दूर रहें तो बेहतर | बस उस दिन तय हुआ अब हर जन्मदिन पर उनके पापा वहां जा कर फल बिस्किट पैसे दे कर आ जायेंगे बिटिया नहीं जाएँगी |
समय फिर बदला एक दिन बिटिया की एक पुरानी छोटी हो चुकी और उनकी फेवरेट फ्रॉक कामवाली को उनके सामने देने लगी | चार साल की बिटिया वो समझ नहीं पायी और उसके सामने ही अपनी फ्रॉक पकड़ रोने लगी कि मेरी हैं उन्हें क्यों दे रही हो | उस समय किसी तरह उसे चुप करा दिया बाद में उन्हें समझाया कि जो हमारे प्रयोग की चीज नहीं हैं उन्हें उन लोगों दे देना चाहिए जिनको उसकी जरुरत हैं लेकिन उनके पास नहीं हैं | ना चाहते हुए भी गरीबी आभाव के बारे में बताना पड़ा | हमारी बात इतना ज्यादा समझ गयी कि एक दिन बोल पड़ी मेरा टूथब्रश फेको मत उसे किसी को दे दो | फिर एक और लेक्चर उस दिन देना पड़ा उन्हें |
छः साल की हुयी तो एक दिन स्कूल से आ कर बोली मेरी पुरानी कहानियों की किताब दे दो हमें डोनेट करना हैं | स्कूल में बड़े अच्छे से केयरिंग और शेयरिंग को समझाया गया था उन्हें , वो आ कर हमें समझाने लगी | उसके बाद कैंसर पेशेंट के लिए कार्ड बनाना , चिल्ड्रन डे और दिवाली पर बनाये गए क्राफ्ट , सजावटी कंदील आदि भी कही जरुरतमंदो को स्कूल से भेजा गया और बच्चो को प्रोत्साहित किया गया |
छठी और सातवीं की उम्र तक बहुत कुछ समझ और सीख गयी थी | इस बीच वो किस्सा भी हुआ जो लिख चुकीं हूँ जिसमे वो भूखे बच्चे को देख अपने खाना छोड़ने की आदत छोड़ी |
आठवे जन्मदिन पर तय हुआ वो फिर से अपने जन्मदिन पर आश्रम जायेगी | इस बार हम एक बालिका आश्रम गए जहाँ बस लड़कियां रहती थी | जन्मदिन मना कर बाहर आये तो बोली ये लड़कियां हॉस्टल ( ये अंदाजा उन्होंने खुद लगा लिया ) में क्यों हैं अब तो गर्मी की छुट्टियां हैं अपने घर क्यों नहीं गयी | हमने सहज ही कह दिया इनके माँ बाप नहीं हैं ये यही रहती हैं इनका कोई दूसरा घर नहीं हैं |
पूरी बात कहते कहते अपनी गलती समझ आ गयी थी वो अभी तक गरीबी समझती थी लेकिन अनाथ होना नहीं | ये बात उनका दिल तोड़ने वाली थी कि दुनियां में कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जिनके माँ बाप और घर नहीं होते | वो आँखों में ढेर सारे आसूँ लिए हमारे सामने खड़ी थी | उस समय तो मैंने उन्हें बहला दिया कि लोग इन्हे गोद ले लेते हैं एक दिन इन्हे माँ बाप और घर मिल जाता हैं |
घर आ कर इस बार विस्तार से एक दिन बात किया कि हम दुनियां में हो रही बहुत सारी चीजे को नहीं रोक सकते ये वो होती ही रहेंगी | हम जो कर सकते हैं वो ये कि अपनी तरफ से जो हो सके उनकी मदद करें | लेकिन हम मदद भी सबकी नहीं कर सकते | इसलिए ये सब बहुत ख़राब हैं का अफसोस करने की जगह अपने हिस्से का सहयोग करते रहन चाहिए |
जल्द ही बिटिया सबसे सहज हो गयी | उसके बाद भी बहुत सारी सच्चाइयां सामने आयी और उनके सवाल भी हुए लेकिन वो दुःख जताने की जगह इन्हे दूर कैसे करे हम क्या कर सकते हैं जैसा था | उस दिन बिटिया को नहीं सीख हमें मिली कि दुनियां की सच्चाइयों से हम कब तक बच्चो को बचायेंगे हमें उन सच्चाइयों को दिखाने समझाने का नजरियां बदलना चाहिए |
उस दिन तय हुआ कि बुद्ध का परिवार गलत था | उन्हें दुःख पीड़ा बीमारी से दूर रखने जगह अगर उन्हें दूर करने में अपने हिस्से का सहयोग कैसे करे का सीख देता तो वो अपनी शक्ति और धन का त्याग करने की जगह उसका उपयोग लोगों की मदद में करते | हां बस हम सब तब बुद्ध को वैसे याद नहीं करते जैसे आज करते हैं , शायद उन्हें जानते भी नहीं |
हम दुनियां में हो रही बहुत सारी चीजे को नहीं रोक सकते ये वो होती ही रहेंगी | हम जो कर सकते हैं वो ये कि अपनी तरफ से जो हो सके उनकी मदद करें | लेकिन हम मदद भी सबकी नहीं कर सकते | इसलिए ये सब बहुत ख़राब हैं का अफसोस करने की जगह अपने हिस्से का सहयोग करते रहन चाहिए |
ReplyDelete... एकदम सटीक बात
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ReplyDeleteबच्चों को ज़िन्दगी की असलियत से रु ब रु कराते रहना चाहिए । अब बुद्ध को बुद्ध बनाना था सो बने ।
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