गडकरी ने बयान दिया कि अगले पांच साल मे पेट्रोल देश मे बैन हो जायेगा इस बयान से हम मे से ज्यादातर ये अंदाजा लगा लेते है कि वो इलेक्ट्रिक वाहनो के आने को बात कर रहे है । चुकी वो एक नेता और मंत्री है तो पांच साल जैसे जुमले कहना उनकी प्रोफेशनल मजबूरी है । हमे पता है कि आगे बीस साल भी पेट्रोल बंद होने को संभावना नही है ।
लेकिन किसी बड़े पत्रकार की इस फोटो पर कुछ ऐसी टिप्पणी हो कि हमे पंख लग जायेगे हम उड़ कर जाने लगेगे , तो आश्चर्य होता है । क्या पत्रकार को ये समझ नही आ रहा है कि वो इलेक्ट्रिक वाहन की बात कर रहे है । नतिजा सैकड़ो लोग बस इस पर गड़करी और सरकार का मजाक उड़ाने के चक्कर मे जरूरी सवाल पुछना , उठाना पीछे छोड़ देते है ।
सवाल होना चाहिए था कि जिस तरह एक के बाद एक इलेक्ट्रिक वाहनो मे आग लगने की घटना हो रही है क्या वो सुरक्षित है । क्या ऐसी दुर्घटनाएं और इतनी ज्यादा किमत उसे आम आदमी की इतनी पसंद बना पायेगा कि पेट्रोल बंद हो जाये ।
एक अखबार की कटिंग देखी जिसमे इंदौर नगर निगम इन वाहनो के चार्जिंग पर टैक्स लगाने की बात कर रही थी तो क्या पुरे देश मे ऐसा हुआ तो ये वाहन महंगे नही पड़गे। इसके अलावा सर्विस सेंटर की संख्या, लंबी दूरी की यात्रा मे चार्जिंग पांइट की व्यवस्था , लोकल मैकेनिक को ट्रेनिंग की व्यवस्था ताकि मरम्मत के लिए ग्राहक कंपनियो की बंधक ना बने आदि इत्यादि अनेक सवालो को चुटकुलेबाजी और सिर्फ सरकार की आलोचना के नाम पर भुला दिया गया ।
कई बार जरूरी सवाल उठने पर उसे दबा भी दिया जाता है फिजूल के सवालो के आगे । जैसे अशोक स्तंभ के अनावरण और पूजा पर पहले तो सही सवाल उठे कि संसद भवन से जुड़े किसी मामले मे नेतृत्व सभा अध्यक्ष को करना चाहिए ना कि परधानमंत्री को । संसद सरकार की नही सांसदो की होती है इसलिए इसमे विपक्षी दलो को आमंत्रित करना चाहिए था ।
सरकार या बीजेपी जो करती आ रही है उसे देखते पूजा पर आपत्ति और सेक्यूलर देश वाली बात उनके पिच पर खेलने जैसा था । उन्होंने ये सब किया ही इसलिए था कि देश फिर से उन्ही मुद्दो मे उलझे जो उनके वोटबैंक को जागृत रखे । वरना नीव पूजा के बाद सीधा गृह प्रवेश की पूजा होती है , तल्ला बनने पर , हर सजावट की पूजा का कोई प्रावधान हमे तो याद नही आ रहा ।
वैसे उनकी तैयारी भी उसी पर थी । टीवी चैनलो पर उनके प्रवक्ता सबसे पहले इसी मुद्दे पर कुद रहे थे ,पूजा जरूरी है हमारे देश की सभ्यता संस्कृति और ब्ला ब्ला ।
लेकिन दोपहर बाद जिस सवाल पर लोगो ने अपना समय और उर्जा दी वो था शेर का मुंह, उसके एक्सप्रेशन । सच मे , वाकई ये इस मामले मे सबसे जरूरी सवाल था । संसद की सर्वोच्चता, सरकार का उस पर हावी होने का प्रयास आदि सब बेकार के सवाल हो गये ।
मोदी के आठ साल के कार्यकाले मे हजारो मुद्द है जब जरूरी सवाल पीछे छोड़ दिये गये और बेकार, फिजूल के सवाल पर बहस किया गया । बार बार हर बार सरकार उनके पिच और मुद्दो पर लोग उलझे रहे और उनकी मंसा पूरी करते रहे ।
इसलिए अगली बार अपना दिमाग लगाये गम्भीर ,तकनीकि, जरूरी सवाल उठाये । सही व्यक्ति के सामने उठाये । सरकार किसी भी दल की हो और कहीं की भी हो सबसे सवाल करे तब उसका कोई मतलब है । वरना चिल्लाते रहिये कि सवाल किजिए उसका होगा कुछ नही ।
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