बीबीसी अर्थ पर कार्यक्रम आता था " बिलीव मी आई एम ए डॉक्टर " | इसमें डॉक्टरों की एक टीम थी जो चिकित्सा के लिए आम लोगो में और इंटरनेट पर जो प्रचलित मान्यताएं थी उन्हें विज्ञानं की कसौटी पर परख कर बताता था कि वो सही हैं या गलत |
एक एपिसोड में वो मोनोपॉज से जुडी समस्या को दिखा रहें थे | एक घरेलु महिला थी जो बता रहीं थी कि उन्हें दिन में कई कई बार शरीर के अचानक बहुत गर्म हो जाने के दौरे जैसे आते थे | इसमें उनको अचानक से बहुत गर्मी महसूस होती थी उनका चेहरा एकदम लाल हो जाता हैं । भयानक बेचैनी घबराहट महसूस करती हैं और किसी काम में उस समय मन नहीं लगता | ये एक दिन में छः से सात बार तक आता था |
एक दूसरा महिलाओं का समूह भी था , उन्हें भी वही समस्या थी | वो बताने लगी कभी मीटिंग के समय तो कभी बॉस या कलीग से बात करते या किसी के साथ काम करते जब ऐसा होता हैं तो उन्हें बड़ी शर्मिंदगी महसूस होता हैं | उन्हें लगता हैं अब हमारा चेहरा लाल हो रहा होगा , सभी लोग हमें ही देख रहें होंगे , पता नहीं लोग क्या सोच रहें होंगे | इससे बेचैनी घबराहट बढ़ जाती हैं फिर ना काम ढंग से हो पाता हैं ना प्रजेंटेशन दे पाते हैं |
महिलाओ का ये समूह इलाज के लिए एक संस्था से जुड़ा था | जब कार्यक्रम से जुड़ी डॉक्टर वहां गयी तो एक ब्रिटिश महिला उन्हें लम्बी साँस लेने , ध्यान लगाने जैसी बाते बता रही थी | डॉक्टर तुरंत कमरे से बाहर आ गयी | बोली एक बड़ी शारीरिक समस्या के लिए ये किस तरह का इलाज बताया जा रहा हैं ये मुझे सही नहीं लग रहा हैं | ये इलाज एक मानसिक बीमारी का हो सकता हैं लेकिन किसी शारीरिक बीमारी का नहीं |
दूसरी अकेली महिला एक स्पेशलिस्ट के पास जाती हैं जो कई सालो से इस समस्या पर रिसर्च कर रही हैं | वो बताती हैं कि हमने वो जींस खोज लिया हैं जो शरीर में इस तरह के बदलाव करता हैं | अब उस जींस का प्रभाव काम करने के लिए हमने एक दवा भी बना ली हैं जो इन्हे दे कर देखा जायेगा | उसने सारे तकनीकी जानकारी उन डॉक्टर को दी |
महिला दो या तीन सप्ताह तक दवा लेती हैं | टीवी कार्यक्रम की डॉक्टर फिर उनके पास जाती हैं , दवा का असर और उनका हालचाल जानने | वो बताती हैं दवा ने काम किया हैं और जो दौरे उन्हें पहले दिन में बहुत बार आते थे वो अब बस दो या तीन बार ही आते हैं जिन्हे वो बर्दास्त कर लेती हैं | पहली बार वो अपना हाल बताते रो दी थी , दूसरी बार वो मुस्कुरा रही थी |
अब डॉक्टर दूसरी महिला समूह के पास जाती हैं | वो महिलाऐं मुस्कुरा नहीं खिलखिला रही थी | वो बोली हमारी तो सारी समस्या ही ख़त्म हो गयी हम कितने समय से इससे जूझ रहें थे | अब जीवन में कितना शांति और सुकून हैं | डॉक्टर ने पूछा क्या आपको वो दौरे अब नहीं आतें | बोली जैसे ही हमें लगता हैं कि गर्मी लगना शुरू हो रहा हैं | हम शांत होते हैं कुछ सेकेण्ड आँखे बंद कर लंबी साँस खींचते और छोड़ते हैं और सब कुछ ठीक हो जाता हैं | अब तो हम ये ध्यान भी नहीं देते कि कौन हमें देख रहा हैं और कौन नहीं | हम अपने कर रहें काम पर फोकस करते हैं | जिसे जो समझना देखना हैं समझे हमें किसी की परवाह नहीं | अब तो धीरे धीरे हमें पता भी नहीं चलता की कब शरीर गर्म हो रहा हैं दौरा आया हैं | डॉक्टर मुंह बाए उन्हें आश्चर्य से सिर्फ देखती रहती हैं , उसे समझ ही नही आता की इलाज हुआ कैसे | डॉक्टर की कोई टिप्पणी इस इलाज पर नहीं होती |
जो मुझे लगता हैं - पहली महिला घरलू थी जबकि महिलाओं का समूह कामकाजी था | जीतनी समस्या उन्हें शारीरिक थी उससे ज्यादा समस्या उन्हें मानसिक थी , लोग देख रहें हैं , काम प्रभावित हो रहा हैं | तनाव बहुत बार समस्याओं को और बढ़ाता चलता हैं | कुछ शारीरिक समस्याएं जो हॉर्मोन्स के परिवर्तन के साथ होते हैं उनमे से कुछ को मानसिक नियंत्रण से ठीक किया जा सकता हैं या सहने लायक बनाया जा सकता हैं , जो भी |
सभी को पता हैं दुःख और तनाव में भी शरीर में बहुत से एंजाइम्स निकलते हैं जो शरीर को और नुकशान पहुंचाते हैं | वो महिला ध्यान और और प्राणायाम द्वारा यही करना सीखा रही थी | कार्यक्रम ब्रिटेन में बना था उसमे सभी स्वेत महिलाऐं ही थी | एक भी भारतीय नहीं यहाँ तक की प्राणायाम सिखाने वाली महिला भी नहीं |
वैसे योग दिवस के बाद योग पर बात करने से पाप तो नहीं लगता ना |
#योग_निरोग
ये तो बहुत बड़ा वाला पाप हो गया । योग को बढ़ावा देना ही तो पाप है क्यों कि इसे अंध भक्त ही तरज़ीह देते हैं । 😄😄😄
ReplyDeleteयोग सच ही सारी समस्या को दूर करने में सक्षम है ।