July 11, 2022

धर्म प्रचार या धर्म परिवर्तन

वेटिकन से दो धर्म प्रचारकों को अफ्रीका के घने जंगलों में आदिवासियों को धर्म का ज्ञान देने के लिए भेजा गया | दो चार महीने बाद वेटिकन से वहां चिट्ठी भेजा गया कि कैसा चल रहा हैं | जवाब आया दोनों बहुत टेस्टी थे दो और भेजो |  दशकों तक हम इसे चुटकुला समझते रहें लेकिन ये  बाद में सच निकला | 

दो तीन साल पहले अपने अंडमान में एक ऐसा ही धर्म प्रचारक गैरकानूनी तरीके से आदिवासियों के द्वीप में घुस गया | उसे नाव से पहुंचाने वाले को गिरफ्तार कर लिया गया तुरंत ही लेकिन उस महाशय की भालो से खुदी लाश समुन्द्र के किनारे से उठाने में टाइम लगा सरकार को | 

मुंबई के बाहर पामबीच रोड से एक बार  जा रही थी ,  समुन्द्र के किनारे किनारे सब मछुआरों के घर थे | सबके आँगन/घर का बाहरी एरिया में तुलसी वाला ओटा ( तुलसी का पौधा लगाने का ख़ास डिजाइन का गमला ) रखा था |   लेकिन सब में तुलसी नहीं मदर मेरी की मूर्ति या क्रॉस लगा था | मजेदार बात ये थी की उस पर भी फूलो की माला चढ़ाई गयी थी और दिया रखने के ताखे पर मोमबत्ती जल रही थी | संस्कार पुराने और भगवान नया | 


बहन करीब पंद्रह साल पहले मुंबई के एक फैशन हॉउस में काम कर रही थी वहां चार और लोग थे जिसमे से तीन ईसाई थे | एक दिन जो सबसे सीनियर महिला थी वो अपने धर्म और अपने के बारे में बड़ी बड़ी बातें करने लगी | जैसे कि वो असली ईसाई थी और सीधा अंग्रेजों की वशंज | अब अंग्रेजो के वंशज तो शकल सूरत से कुछ तो पता देंगे ही अपना | 


बहन ने पास बैठे दूसरे लडके से पूछा लिया तुम कन्वर्टेड हो या तुम भी | उसने तपाक से कह दिया इंडियन में 99 परसेंट कन्वर्टेड ही हैं और उसमे से भी 95 परसेंट छोटी जाति या आदिवासी हैं | सीनियर मैडम भड़क गयी इस बात पर | कन्वर्टेड कहलाना उनके इज्जत शान के लिखाफ था |   नतीजा महीने भर बाद हमारी बहन की नौकरी से छुट्टी हो गयी |  दो तीन महीने ही उसे काम करते वहां हुआ था और सीनियर मैडम बीस साल से थी | उन्होंने जो भी उटपटांग आरोप लगाये उसे माना गया बहन की ना सुनी गयी | खैर बहन को तुरंत दूसरी जॉब मिल गयी | 


उस दिन पता चला कि धर्म बदलने वालों कि धर्म बदलने के उदेश्य की पूर्ति वहां भी नहीं हो रही हैं जिसके चाह में सबसे ज्यादा   ये धर्मपरिवर्तन होते हैं वो हैं इज्जत ,सम्मान,  बराबरी का दर्जा |  यही हालत मुंबई में बौद्ध धर्म अपनाने वालों का भी हैं | धर्म बदलने  के बाद भी समाज में उनका स्थान दलित पिछड़े वाला ही हैं | 


कोरोना के शुरूआती समय में मैंने अपने एक दूर के रिश्तेदार के मौत की बात बताई थी वो भी ईसाई बन चुके थे | किसी जमाने में यूपी से आये शायद गरीबी में पैसे के लिए धर्म बदल लिया लेकिन सोच नहीं | बेटे का ब्याह ना केवल हिन्दू धर्म मे किया बल्कि अपनी ही जाति सरनेम में किया | हल्दी तेल घर पर हुआ और ब्याह चर्च में | रहन सहन सोच खानपान सब वही पुराना | 


कुछ ही साल पहले पतिदेव का एक पुराना जूनियर कनवर्ट हुआ था  | अपने किडनी के ऑपरेशन के लिए उसे पैसे चाहिए थे | एक लाख मिल रहा था हो गया कन्वर्ट | बस अब दिवाली के साथ क्रिसमस भी मनाता हैं | पतिदेव को इस बारे में तब पता चला जब एक और व्यक्ति को पत्नी के इलाज के लिए पैसे चाहिए था तो उसने उसे भी पैसे पाने का ये आसान रास्ता बताया |  


खुद हमें एक बार दो लड़कियां चौपाटी पर मिल गयी थी | हम , मम्मी और बिटिया तीनो थे | आते ही , वो आ कर विश्व कल्याण करेगा , शुरू की साथ में एक बुकलेट था जबरजस्ती हाथ पकड़ कर थमाने लगी | मैं और मम्मी मना किये जा रहें थे लेकिन गजब ढीट थी , जाने को तैयार ही नहीं | जब बिटिया के सर पर हाथ रख कर बच्ची का भविष्य उज्जवल होगा करने लगी तो हमें ही वहां से आगे बढ़ना पड़ा | 

 बचपन में हमारे स्कूल के बाहर कई दिनों तक ऐसे बुकलेट बांटे थे | उसमे भगवान ईसामसी की कहानियां और महानता की गाथा थी |  दूसरे दिन कुछ लड़कियां  बताने लगी भगवान जी की किताब थी हमने घर के मंदिर में रख दी हैं | बाकियों ने कहानी की किताब की तरह पढ़ कर फेंक दी | 

7 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-7-22) को सोशल मीडिया की रेशमी अंधियारे पक्ष वाली सुरंग" (चर्चा अंक 4488) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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  2. चेताने वाली महत्वपूर्ण पोस्ट

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  3. धर्म की धुरी स्थिर है...सम्प्रदाय बदल सकते हैं...धर्म नहीं...सुन्दर लेख...👍👍👍

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  4. लोभ के कारण जो धर्म परिवर्तन करते और कराते हैं उनका धर्म से दूर का भी नाता नहीं होता

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  5. संघातिक स्थिति, विचारपूर्ण लेख।

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  6. शब्द शब्द हृदय में उतरता, यथार्थ के धरातल पर उपजा सराहनीय सृजन।
    बहुत बढ़िया बढ़िया जानकारी।
    सादर

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